बायोचार और उसका उत्पादन

बायोचार उच्च कार्बन उक्त ठोस पदार्थ हैं। वह उच्च तापमान पर तैयार किया जाता है, जिसमे ऑक्सीजन अनुपस्थित रहती या कम मात्रा में होती है। यह कहा जा सकता हैं कि यह एक आंशिक  अवायवीय प्रकिया है। जिसमे किसी भी कार्बनिक ठोस पदार्थ  को भिन्न भिन्न तापमान पर रख कर बायोचार को तैयार किया जाता है। बायोचार एक बहुत ही प्रभावशाली उर्वरक है।, जो कि अवशिषट कार्बनिक पदार्थो कि पायरोलिसिस की प्रकिया द्वारा तैयार जाता है।

यह एक उभरती हुई तकनीक है।, जो कि आधुनिक कृषि उत्पादन के लिए अतिआवश्यक है। बायोचार मृदा उर्वरक  शक्ति बढाने के साथ साथ फसल कि उत्पादकता को भी बढाता है। यह किसानों के लिए एक बहुत ही किफायती और बहुपयोगी तकनीक साबित हो चुकी है। बायोचार कृषि के साथ-साथ पर्यावरणीय दृष्टि से भी उपयोगी साबित हुआ है। क्योंकि इसके अनेक पर्यावरणीय महत्व हैं।

कृषि उत्पादन में बायोचार का महत्व    कृषि उत्पादन में बायोचार का महत्व

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चित्र- अ एवं ब में २० किलोग्राम क्षमता के ड्रम  में बायोचार उत्पादन को दर्शाया गया है। जिसमे कृषि अवशिष्ट के रूप में धान की भूसी को लिया गया है।

बायोचार की कृषि के क्षेत्र में उपयोगिता

(१) मृदा उर्वरता बढ़ाने में

मृदा की उर्वरा शक्ति बायोचार के द्वारा अलग अलग प्रकार से बढती है। जैसे कि मृदा की नमी को रोकने की क्षमता बढ़ना, मृदा घनत्व कम हो जाना, मृदा कि भौतिक-रासायनिक एवं जैविक गुणो का बढ़ जाना इत्यादि मापदंडो पर सकारात्मक प्रभाव होता है। और साथ ही साथ इसके द्वारा उपचारित मृदा की उर्वरा शक्ति अन्य उर्वरक की तुलना में अधिक मापी गयी है। वह फसल की उच्च उत्पादन क्षमता को दर्शाता है। बायोचार की उर्वरा शक्ति उसके तापमान पर आधारित है।

समान्यतया बायोचार ३००, ४००, ५००, ६००, ७००, ८००, ९०० और १००० डिग्री सेंटिग्रेड पर तैयार किया जाता है। परन्तु विभिन्न प्रकार के अनुसन्धानों  से पता चलता है कि ५००–६०० डिग्री सेंटिग्रेड तापमान पर तैयार किया गया बायोचार मृदा की उर्वरा शक्ति के लिए ज्यादा प्रभावशाली होता है। क्योंकि इस तापमान पर बायोचार के पोषक तत्व खत्म नहीं होते है। बायोचार के पोषक तत्व उसके आंतरिक गुणों पर भी निर्भर करते है। परन्तु जब उसको उच्च तापमान पर तैयार किया जाता है तो उसके पोषक तत्वों में कमी आ जाती है। इसलिए ५००–६०० डिग्री सेन्टीग्रड तापमान पर  तैयार क्या गया  बायोचार कृषि उपयोग के लिए उच्च कोटि का माना जाता है।

(२) सूक्ष्मजीवो का वासस्थान

बयोचार का उपयोग मृदा में मृदा उपयोगी सूक्ष्मजीवो की संख्या को बढाने में बहुत ही मददगार साबित हो चुका है क्योकि इसकी छिद्रउक्त आंतरिक संरचना सूक्ष्मजीवो के वास स्थान और जनन के लिए बहुत ही उपयोगी होती है मृदा में उपस्थित अनेक प्रकार के जीव जैसे कि निमेटोड, प्रोटोजोया और अन्य मृदा जीव उन सभी कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीवो को अपनी खाद्य श्रखला का हिस्सा बना लेते है जिससे कि मृदा कि उर्वरक शक्ति प्राभावित होती है जिसके फलस्वरूप फसल उत्पादन कम हो जाता  है और साथ ही साथ मृदा में सूक्ष्मजैव विविधता भी घट जाती है

 (३) फसल उत्पादन क्षमता

अनेक प्रकार के अनुसंधानों से पता चला है कि बायोचार एक बहुपयोगी उर्वरक है। जो उत्पादन बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिससे कि किसानों की आय बढ़ती है और साथ ही साथ पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है। यह मृदा सूक्ष्मजीवों के लिए एक सुरक्षा कवच प्रदान करता है। फसल कि कायिक अवस्था से लेकर उसके परिपक्व होने तक महत्वपूर्ण योगदान देता है। फसल को मौसम के अनुकूल बनाता है तथा फसल अपनी कायिक अवस्था में ही उच्च स्तरीय वृद्धि को दर्शाती है। जिसमें कि पौधे की जड़ से लेकर तना, स्तंभ तक सकारात्मक प्रभाव देखा गया है। फसल रोपाई के बाद वृद्धि को अलग-अलग अवस्थाओं में मापा भी जा चुका है।

कृषि उत्पादन में बायोचार का महत्व     कृषि उत्पादन में बायोचार का महत्व

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चित्र: (अ) और (ब) में कृमश बिना बयोचार और बयोचार उपचारित मृदा में धान की फसल का एक परिदृश्य दिखाया गया है।

(४) मृदा पोषक तत्वों  के ह्रास में सुधार

मृदा में बायोचार का उपयोग करने से मृदा बनावट, छिद्रण, कण आकार, वितरण और घनत्व प्रभावित होता है। बायोचर का उपयोग मृदा की अम्लता को कम कर है। इसके अलावा मृदा कि विद्द्युत चालकता और धनायन विनिमय क्षमता को बढाता है। मृदा कि अम्लता के बढ़ने से  बायोचार की उपयोगिता मृदा में पोषक तत्वों की उपलब्धता को पूरा करता है। वह मृदा में पोषक तत्वों की कमी को दूर करता है। बायोचार मृदा कणों से बंधे रहते हैं, इस प्रकार मृदा में बायोचार १००-१००० वर्ष तक उपस्थित रह सकता है, जोकि मृदा कि उच्च उर्वरा शक्ति को दर्शाता है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि बायोचार १००- १००० वर्षों तक पोषक तत्वों को अपने अंदर समाहित कर सकता है एवं मृदा को एक लम्बे समय तक उपजाऊ बना सकता है।

(५) बायोचार के रूप में कृषि अवशिष्ट का उपयोग

विश्व में प्रतेक वर्ष मिलियन टन के हिसाब से कृषि अवशिष्ट निकलता है जिसको की वह  के ज्यादातर देशो में आग के द्वारा जला दिया जाता है। वह बाद में एक अनावश्यक उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है, क्योकि उसके ज्यादातर पोषक तत्व वाष्पिकृट हो जाते है। और कुछ मात्रा में कार्बन एवम् अन्य तत्व शेष बचते है। बयोचार आधारित कृषि पर्यावरणीय स्वाच्छ तकनीकी पर आधारित है, लेकिन भारत में इस तकनीकी के आभाव में किसान कृषि अवशिष्ट को जिसके द्वारा पर्यावरण भी प्राभावित होता है।

वह जिस अवशिष्ट को जानकारी के आभाव जलाया जाता है, उसको बयोचार के रूप में अच्छी फसल उत्पादन लेने के लिए कृषि में प्रयोग किया जा सकता है इसके प्रयोग से विभिन्न प्रकार के रासयेनिक उर्वरक के प्रयोग से बचा जा सकता है वह कृषि मृदा के लिए बहुत हानिकारक होते है इस प्रकार से अच्छी फसल प्राप्त करके अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है। दिन पर दिन रासायनिक उर्वरको के इस्तेमाल से मृदा के भौतिक-रासायनिक और साथ साथ  जैविक गुणो पर भी नकारात्मक प्रभाव होता है जिससे कि मृदा कि उर्वरक्ता आंशिक अथवा पूर्ण रूप से प्राभावित होती है।

जिससे कि फसल का उत्पादन कम को जाता है इसीलिए किसानो की आय भी प्राभावित होती है यदि वर्तमान में कृषि फसल उत्पादन को देखते है तो १५ वर्ष पहले की उतपादन दर याद आती है जो कि वर्त्तमान दर से लगभा दोगुना ज्यादा होती थी इसीलिए किसान का जीवन भी खुशहाल था परन्तु वर्तमान में दिन प्रतिदिन अच्छे उत्पादन की लालशा ने किसानो को विभिन्न प्रकार के रासायनिक उर्वरको का  उपयोग करने के लिए मजबूर कर दिया है,  जिसके दुष्परिणाम आज हमारे सामने है।

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