धान की खेती में बायोचार के रूप में कृषि अपशिष्ट का योगदान

विश्व स्तर पर कई विकसित एवं विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है| कृषि में भारत का भी महत्वपूर्ण स्थान है। भारत की लगभग ७०% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है एवं सकल घरेलू उत्पाद में लगभग १७.४ प्रतिशत कृषि का योगदान है। वर्तमान में दुनिया की जनसंख्या लगभग ७.२ अरब से २०५० के अंत तक ९.६ अरब पहुँचने की संभावना है। बढ़ती  जनसंख्या की रफ़्तार को देखते हुए उस समय तक सभी को भोजन देने के लिए अनाज उत्पादन लगभग ५०% (२.१-३ अरब टन) तक बढ़ाना होगा।

इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए वर्तमान में तकनीक विकसित करने की जरुरत है, जिससे आने वाले समय में आम जनमानस को उसकी जरूरत के मुताबिक कृषि भूमि को बिना संदूषित किए कम लागत और श्रम द्वारा पौष्टिक एवं स्वच्छ भोजन मुहैया कराया जा सके। देश में लगातार घटती कृषि योग्य भूमि एवं अधिक उत्पादन की लालच में रासायनिक खादों से दूषित हो रही मृदा का भविष्य के लिए अच्छे कृषि उत्पादन के स्वस्थ संकेत नही हैं। ऐसे में देश की एक तिहाई जनसंख्या को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना और साथ ही साथ मृदा की उत्पादकता स्तर को बनाये रखना वैज्ञानिकों, सरकार एवं किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती है।

चावल देश की लगभग ७०-८० प्रतिशत जनसंख्या के भोजन का मुख्य हिस्सा है। जिसमें हम विश्व में दूसरे स्थान पर है| किन्तु मृदा की उर्वरा शक्ति, उर्वरक प्रयोग इत्यादि कारणों से धान की पैदावार प्रभावित हुई है, और यही स्थिति बनी रही तो आने वाले समय में हमारी दूसरे नम्बर की स्थिति भी प्रभावित हो सकती है। सामान्यतः उपयोग में लाने वाले रासायनिक उर्वरक मृदा के भौतिक-रासायनिक एवं जैविक गुणों पर ऋणात्मक प्रभाव डाल रहे हैं।

लेकिन हाल ही में खोजी की गयी एक नई तकनीक जो कृषि अपशिष्ट को पायरोलिसिस विधि द्वारा नए प्रकार के उर्वरक रूप में तैयार किया जाता है। जिसे बायोचार नाम से जाना जाता है। लेकिन हमारे देश में जानकारी के अभाव में मिलियन टन में निकलने वाले कृषि अपशिष्ट को जला दिया जाता है। जबकि कृषि अपशिष्ट का बायोमास जलने के बाद उपयोगी नहीं रहता है। इसलिए इस नई  तकनीक को वर्तमान में वैज्ञानिकों, सरकार एवं किसानों द्वारा खूब प्रोत्साहन मिल रहा है। जिससे कि कृषि अपशिष्ट को कृषि उपयोगी बनाया जा सके और कम लागत में अच्छा कृषि उत्पादन मिल सके।

बायोचार क्या है?

बायोचार एक गहरे काले रंग का अग्रवर्ती कार्बन युक्त कणमय पदार्थ होता है, यह जैविक कार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों को प्रयोग करके तैयार किया जाता है।जैसे धान की भूसी, लकड़ी का बुरादा, कुक्कुट अपशिष्ट आदि का उपयोग बायोचार बनाने में किया जाता है। इसमें कार्बन के अतिरिक्त कुछ मात्रा में अन्य तत्व (हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, सिलिकॉन, पोटैशियम एवं प्लैटिनम, आदि) भी पाये जाते हैं। इसमें किसी भी कृषि अपशिष्ट को ऑक्सीजन कि कम मात्रा में परोक्ष रूप से जलाकर बनाया जाता है, जिसको पायरोलिसिस कहते हैं। यह मृदा स्वास्थ्य के लिए बहुत ही उपयोगी उर्वरक होता है, जिसके उपचार से फसल की उत्पादन क्षमता बढ़ने के साथ साथ पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है।

कृषि अपशिष्ट से बायोचार का उत्पादन

कृषि अपशिष्ट को उच्च तापमान पर ड्रम या हीप विधि द्वारा तैयार किया जाता है। तापमान की सीमा अलग-अलग (३००,४००,५००,६००,७००,८०० और ९००० डिग्री सेंटीग्रेड) हो सकती है, किन्तु ५००-६०० डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर तैयार किया गया बायोचार ज्यादा प्रभावशाली माना जाता है। क्योंकि इसमें मृदा उपयोगी पोषक तत्वों की मात्रा अपेक्षाकृत  अधिक पाई जाती है। बायोचार बनाने के लिए सर्वप्रथम कृषि अपशिष्ट को किसी धात्विक ड्रम में भरकर बंद कर देते है किन्तु ध्यान देने योग्य बात होती है कि ड्रम को पूर्णरूपेण  बंद नहीं करते है,

उसमें थोड़ा स्थान वायु प्रवेश के लिए छोड़ देते हैं, जिससे ड्रम के भीतर पूर्णतया अवायवीय वातावरण नहीं बन पाये। इसके पश्चात् ड्रम के नीचे लगभग ३०-४० मिनट्स के लिए आग जलाते हैं, इसका तापमान स्वयं ही लगभग ५००-६०० डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुँच जाता है। जब ड्रम से भूरे रंग का धुआं निकलना शुरु हो जाय, तब बायोचार लगभग बनकर तैयार हो जाता है। इसके बाद बायोचार को कुछ समय के लिए खुली हवा में ठंडा होने हेतु छोड़ देते हैं। अंत में यह कृषि अपशिष्ट मृदा उपयोगी बायोचार के रूप में तैयार हो जाता है। उसके बाद उसको प्लास्टिक बैग या कनस्तर में भरकर भविष्य में उपयोग हेतु रख लेते हैं।

     

धान की खेती में बायोचार के रूप में कृषि अपशिष्ट का योगदानधान की खेती में बायोचार के रूप में कृषि अपशिष्ट का योगदान

क                                                                                                          ख

चित्र: क एवं ख में बायोचार उत्पादन को दर्शाया गया है।

कृषि अपशिष्ट के प्रकार                 

  • धान की भूसी
  • गेहूँ की भूसी
  • मक्के का तना वाला भाग
  • ज्वार की भूसी
  • उड़द की भूसी
  • सरसों का फली एवं तने वाला भाग
  • बाजरे की भूसी

कृषि अपशिष्ट बायोचार की विशेषतायें

  • मृदा की पानी रोकने की क्षमता में वृद्धि करता है
  • मृदा उपयोगी सूक्ष्मजीवों की संख्या में वृद्धि करता है
  • मृदा में सूक्ष्मजीवों के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है
  • पौधे की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है
  • मृदा कार्बन एवं नाइट्रोजन पूल में सुधार करता है
  • फसलों की वृद्धि को प्रोत्साहित करता है
  • मृदा में मीथेन/ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को घटाता है

धान की फसल में बायोचार का उपयोग एवं उसके सकरात्मक प्रभाव

तने की लम्बाई

कई वैज्ञानिक शोधों के दौरान पाया गया है कि बायोचार उपचारित धान में पौधे की कायिक अवस्था मे अधिक वृद्धि होती है। इसके अलावा पौधे के तने एवं जड़ इत्यादि में भी अपेक्षाकृत उच्च स्तरीय वृद्धि देखी गयी है। चित्र ग एवं घ में पौधे की वृद्धि को दर्शाया गया है। बायोचार उपचारित मृदा में प्रारम्भिक अवस्था में धान के पौधे में लगभग १-२ महीने के मध्य में  उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज़ हुई है तथा धान की उत्पादक दर अन्य उर्वरकों की तुलना में अधिक पाई गयी है।

साथ ही साथ बायोचार उपचारित मृदा में सूक्ष्मजैव विविधता बढ़ने से जैविक क्रियाओं में भी सुधार आया है। धान के पौधे के तने की वृद्धि इस बात को दर्शाती है की उसका बायोमास भी उसी अनुपात मे बढ़ा होगा। बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ स्थित पर्यावरण विज्ञान विभाग के शोध प्रक्षेत्र में रिसर्च के दौरान पाया गया कि बायोचार उपचारित मृदा के धान के पौधों का बायोमास बायोचार रहित मृदा के धान के पौधों के बायोमास की तुलना में लगभग दो गुना ज्यादा था। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि बायोचार उपचारित मृदा में धान सहित अन्य फसलों का उत्पादन अधिक होता है|

धान की खेती में बायोचार के रूप में कृषि अपशिष्ट का योगदानधान की खेती में बायोचार के रूप में कृषि अपशिष्ट का योगदान

ग                                                                                                                 घ

चित्र: ग एवं घ में धान के पौधे के तने का मापन दर्शाया गया है

धान के पेनिकल (पुष्पगुच्छ) की लम्बाई

बायोचार का प्रभाव तने की लम्बाई के साथ-साथ पौधे की पेनिकल (पुष्पगुच्छ) लेंथ पर भी होता है। उपरोक्त शोध के दौरान देखा गया कि बायोचार उपचारित मृदा की तुलना में बायोचार रहित मृदा में लगाये गए पौधे के तने और पेनिकल (पुष्पगुच्छ) लेंथ कम (चित्र छ) थी। जबकि पौधे के पुष्पगुच्छ की लम्बाई का मापन अलग-अलग अवस्थाओं में किया गया था।

पौधे के पुष्पगुच्छ की लम्बाई को प्रथमतः उसकी कायिक अवस्था में तथा द्वितीयतः उसकी परिपक्व अवस्था में मापा गया था। परिपक्व अवस्था की तुलना मे कायिक अवस्था में वृद्धि का स्तर अधिक था। इस प्रकार बायोचार उपचारित मृदा में सबसे ज्यादा प्रभाव पौधे की कायिक अवस्था में होता है। जिसमें कि रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करने पर इस तरह का सकारात्मक परिणाम नहीं मिलता है।

 

धान की खेती में बायोचार के रूप में कृषि अपशिष्ट का योगदान धान की खेती में बायोचार के रूप में कृषि अपशिष्ट का योगदान

च                                                                                         छ

चित्र: च एवं छ में धान के पौधे के पुष्पगुच्छ की लम्बाई का मापन दिखाया गया है

 

धान की उत्पादकता

बायोचार का उपयोग धान के खेत मे छोटे-बड़े दोनों ही स्तरों पर किया गया है तथा यह भी देखा गया कि इसके उपयोग से धान की उत्पादन दर पर सकारात्मक प्रभाव होता है और धान की फसल में बायोचार के उपयोग से उल्लेखनीय परिणाम भी मिले हैं। धान की उत्पादन दर के बढने के साथ साथ मृदा कि उर्वरक शक्ति लम्बे समय तक प्रभावशाली बनी रहती है|

कहा जा सकता है कि रासायनिक उर्वरक की तुलना में यह बहुत लाभकारी होता है। यह फसल की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण अनुकूल भी होता है। इसके अनेक पर्यावर्णीय लाभ हैं। धान की खेती में इसको प्रयोग करने पर उच्च स्तरीय परिणाम मिलते है। यह मृदा की उर्वरा शक्ति को बिना किसी नुकसान के लगभग दो गुना बढ़ा देता है।

मृदा की उच्च उत्पादन क्षमता उसके अन्दर मौजूद पोषक तत्वों पर निर्भर करती है। जितने ज्यादा उच्च मात्रा में उसके अंदर पोषक तत्व होंगे, उस मृदा की उत्पादन दर उतनी अधिक होगी। वर्तमान में किसान उच्च स्तर का उत्पादन पाने की लालसा में विभिन्न प्रकार के हानिकारक उर्वरकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। जो मृदा के लिए काफी नुकसानदायक है। इसलिए रासायनिक उर्वरकों  के अत्यधिक प्रयोग से मृदा के स्वास्थ के साथ-साथ जीव-जंतुओं का स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है।

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