पर्यावरण प्रबन्धन मे बायोचार की भूमिका

वर्तमान समय में पर्यावरण की समस्या पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। पूरी दुनिया में पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं के निराकरण हेतु लगातार कई मुद्दों पर वैज्ञानिक सम्मेलन आयोजित हो रहे हैं। परन्तु स्थाई समाधान अभी भी हमारी पहुँच से कहीं दूर है। पर्यावर्णीय संतुलन दिन पर दिन बिगड़ता जा रहा है। यदि यही स्थिति रही तो आने वाले दशकों  में पर्यावरण मुद्दा एक विकराल समस्या बनकर हमारे सामने खड़ा होगा और जिसके कारण सम्पूर्ण मानव जाति के विनाश को कोई रोक नहीं पायेगा। वर्तमान में हमें पर्यावरण के दुष्परिणाम दिखने लगे हैं, जैसे ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ जाना, बारिश समय पर नहीं होना या अपेक्षाकृत कम होना, मृदा का दूषित हो जाना इत्यादि समस्यायें आकार लेने लगी हैं।

इन समस्याओं को देखते हुए पर्यावरण प्रबन्धन अतिआवश्यक है। क्योंकि जनसंख्या एवं उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विभिन्न प्रकार के कारक पर्यावरण संतुलन को प्रभावित कर रहे हैं। यह तभी संभव होगा जब हम पर्यावरण के अनुकूल वस्तुओं का उपयोग करेंगे। इंसान के खाने-पीने से लेकर उसके रहन-सहन का पूरा प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है। अर्थात पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी ज्ञान नहीं होने के कारण इंसान पर्यावरण को अपनी दैनिक क्रियाओं द्वारा दूषित कर रहा है, उदाहरण के तौर पर कृषि में उपयोग की जाने वाले विभिन्न रासायनिक उर्वरक, अत्यधिक मात्रा में कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल, ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन आदि कारक प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण को हानि पहुँचा रहे हैं।

जिसमें मृदा, जल एवं वायु प्रदूषण मुख्य हैं। कुछ पर्यावरण अनुकूलन तकनीकों को अपनाकर हम पर्यावरण को स्वच्छ रख सकते हैं। कृषि उत्पादन में रासायनिक उर्वरक के स्थान पर जैविक उर्वरक अथवा बायोचार का उपयोग कर भी पर्यावरण संदूषण से बचा जा सकता है।

बायोचार क्या है ?

बायोचार उच्च कार्बन युक्त गहरे काले रंग का ठोस पदार्थ होता है। जिसको किसी कनस्तर अथवा ड्रम के अंदर वायु की सीमित मात्रा में आग मे जलाकर बनाया जाता है। बायोचार कृषि अपशिष्ट (धान, गेहूँ, ज्वार की भूसी, कुक्कुट अपशिष्ट इत्यादि) के पायरोलिसिस द्वारा तैयार किया जाता है। बायोचार का उपयोग उर्वरक के रूप में फसल उत्पादन मे करके कई तरह की पर्यावर्णीय समयाओं से बचा जा सकता है। अपशिष्ट को बायोचार में परिवर्तित कर उसको मृदा उपयोगी बनाया जाता है। जिससे कि पर्यावरण स्वच्छ रहता है।

इस प्रकार कृषि अपशिष्ट भी पुनर्चकृत होकर कृषि कार्य में उपयोगी हो जाता है। बायोचार पर्यावरण अनुकूल पदार्थ होता है। यह पर्यावरण संतुलन में उच्च स्तर की भूमिका निभाता है। मृदा में इसके उपयोग से मीथेन (ग्लोबल वार्मिंग में कार्बनडाईऑक्साइड की अपेक्षा लगभग ३० गुना प्रबल) के उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। मृदा में उपस्थित उच्च धातुओं तथा अन्य संक्रमण को डिटोक्सिफिकेशन  करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है| मुख्यत: बायोचार का उपयोग मृदा सुधार एवं उर्वरा शक्ति को बढाने में किया जाता है। बायोचार के मृदा में उपयोग से पर्यावरण उपयोगी जीवाणुओं की संख्या बढ जाती है। जो मृदा के स्वास्थ्य के साथ-साथ फसलों के उत्पादन में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। 

बायोचार के पर्यावरण में लाभ:-

वर्तमान समय मे बयोचार का  उपयोग मुख्य रूप से उच्च स्तरीय कृषि उत्पादन प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है| क्योकि इसके उपयोग से पर्यावरण अनुकूल एवं किफायती दर का कृषि उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है तथा विभिन्न अनुशंधानो से यह साबित हो चुका है कि बायोचार कृषि के लिए एक उपयोगी उर्वरक होता है इसके उपयोग से मृदा सुधार मे सकारात्मक परिणाम देखने को मिलते है उदाहरण के लिए- मृदा की उर्वरा शक्ति का बढ जाना, पोषक तत्वों की मृदा मे संपोषणीयता को बनाये रखना तथा पर्यावरण मे उच्च धात्विक तत्वों के निस्तारीकारण हेतु भी बायोचार की मुख्य भूमिका रहती है|

साथ ही साथ बयोचार का उपयोग जैविक ईधन के रूप में किया जाता है| बयोचार उत्पादन के दौरान संघनन की क्रिया द्वारा जैव ईधन को तैयार किया जाता है| बायोचार उत्पादन के दौरान कई सारी गैसे निकलती है जिनका उपयोग जैविक ऊर्जा के लिए किया जाता है तथा बायोचार का इन सब के साथ साथ ग्लोवल वार्मिंग में भी साहरानीय योगदान है| बायोचार मृदा से निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है| जो वर्तमान मे  ग्लोबल वार्मिंग की एक विकराल समस्या बनी हुई है|

पर्यावरण प्रबन्धन मे बायोचार की भूमिकाचित्र:  पर्यावरण में बायोचार के लाभ

 

जलवायु परिवर्तन को कम करने में

जलवायु परिवर्तन की समस्या इतनी ज्यादा बढ़ चुकि है कि जन जीवन पूरी तरह से प्राभावित होने लगा है जलवायु परिवर्तन पर हो रही विश्व स्तर की सारी वार्ता विफल होती नगर आ रही है अर्थार्त अभी तक कोई भी उचित समाधान नहीं निकल पाया है जिससे की यह समस्या दिन प्रति दिन बढती ही जा रही| अगर कोई उचित समाधान शीघ्र ही नहीं हो पाया तो वह वो दिन दूर नहीं कि इंसान को अपना जीवन यापन करने मे एड़ी चोटी का दम लगाना पड़ेगा| यह भी नहीं कहा जा सकता कि जलवायु परिवर्तन के लिए किसी एक देश के नागरिक ही जिम्मेदार है हर वो इंसान जो प्रथ्वी पर अपनी दैनिक क्रियाये करता है वह जलवायु परिवर्तन के लिए उत्तरदायी है|

सभी का पर्यावरण को दूषित करने में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से योगदान है उदारण के लिए पर्यावरण अनुकूल वस्तुओं का उपयोग नहीं करना अथवा पर्यावरण अनुकूल कृषि का क्रियान्वयन नहीं करना आदि कारक सम्मलित है| धान के खेत से प्रतेक वर्ष ४०-४३ टेराग्राम  मीथेन गैस उत्सर्जित होती है वह कुल मीथेन उत्सर्जन का ६-१० प्रतिशत है जिसमे कि कुल ९० प्रतिशत धान का उत्पादन एशिया मे होता है| इन आँकडो से ही मीथेन उत्सर्जन का एशिया और फिर विश्व स्तर पर अंदाजा लगाया जा सकता है|

कृषि में उपयोग होने वाली भिन्न भिन्न प्रकार के रासायनिक उर्वक भी कुछ हद तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है| इन सभी समस्याओं को देखते हुए हमें पर्यावरण अनुकूल वस्तुओ के उपयोग की आवश्कता है जैसे कि कृषि हेतु ऐसे उर्वरक जो पर्यावरण अनुकूल हो एवम् ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम कर सके| उदारण के लिए बायोचार का मर्दा में रासायनिक उर्वरको की जगह उपयोग करना क्योकि यह पर्यावरण अनुकूल उर्वरक होता है जिससे कि कृषि उत्पादन मे उच्च स्तर के परिणाम मिलते है साथ ही साथ पर्यावरण उपयोगी सूक्ष्म जीवो की संख्या को भी बढाता है|

बायोचार मृदा से उत्सर्जित होने वाली गैसों (मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रिक ऑक्साइड) के रिशाव को भी कम करने मे अहम भूमिका निभाता है| मीथेन  सामान्तय: धान के खेत, वन क्षेत्र एवं दलदली भूमि से उत्सर्जित होती है| बायोचार उपचारित मृदा मे मीथेन शोषक जीणुओ की संख्या पर भी सकारात्मक प्रभाव देखा गया है जो मीथेन अवशोषित करने मे सकारात्मक भूमिका निभाते है|

ऊर्जा उत्पादन में

वर्तमान मे उपयोग में लाये जाने वाले ईधन की दिन प्रति दिन आपूर्ति नहीं होने के साथ साथ उसके दाम में भी वृदि होती जा रही है जिसको उपयोग मे लाना आम आदमी के वस के बहार हो चुका है ऐसे में जरुरत है किसी ऐसी तकनीकी को विकसित करने की जिससे की इन सभी समस्याओं से निजात मिल सके और भविष्य भी सुरक्षित हो सके इन सब को देखते हुए भिन्न भिन्न प्रकार की तकनीकी विकसित की जा रही है जैसे की समुद्र बायोमास, एवं जेट्रोफा की फसल को उपयोग में लाकर ईधन उत्पादन किया जा रहा है,

इन सभी के साथ साथ तीसरी सबसे ज्यादा उपयोगी तकनीकी, अपशिष्ट पदार्थ के बायोमास की पायरोलिसिस के द्वारा बायोचार के उत्पादन के साथ साथ जैविक ईधन को तैयार करना यह एक बहुत ही किफायती एवं पर्यावरण अनुकूल  तकनीकी है जिससे की किसी भी अपशिष्ट कार्बनिक पदार्थ को उपयोग में लाकर उसको वायु की आंशिक उपस्थिति में जला कर (पायरोलिसिस) की क्रिया द्वारा तैयार किया जाता है| जब किसी बायोमास को वायु आंशिक उपस्थिति मे जलाया जाता है तब उससे बूंदों के रूप मे द्रव्य निकलता है जो संघनित होने पर जैव ईधन का काम करता है एवं शेष ठोस भाग बायोचार के रूप में एकत्र कर लिया जाता है विश्व के कुछ देशो मे यह खाना बनाने एवं वाहनों मे एक ईधन के रूप मे काम में लाया जा रहा है

इस तकनीकी के माध्यम से प्रकृति में बढ़ रहे कार्बनिक अपशिष्ट की मात्रा भी कम होती है और कृषि उपयोगी उपयोगी पदार्थ भी बन जाता है| अगर कृषि अपशिष्ट की बात करे तो मिलियन टन के हिसाब से प्रतेक वर्ष कृषि अपशिष्ट कृषि भूमि से निकलता है जिसको की विश्व के ज्यादातर हिस्सों मे जला दिया जाता है या उसी भूमि में गला दिया जाता है| इस प्रकार से उसका वास्तविक लाभ नहीं तो मृदा को मिल पता है और ना ही किसान को, एक सबसे  बढ़ा चिंता का विषय यह है की जनसंख्या के विस्फोटक वृदि के स्तर को देखते हुए किस प्रकार से पर्याप्त मात्रा में मानव के लिए खाद्य उपयोगी जरुरतो को मुहिया कराया जाये| इन सभी समस्याओं को संज्ञान में रखते हुए बायोचार आधारित तकनीकी बहुत लाभकारी साबित हो सकती है|

पर्यावरण प्रबन्धन मे बायोचार की भूमिका

 चित्र: अपशिष्ट पदार्थ के द्वारा बायोचार एवं जैविक तेल का उत्पादन  

 

अपशिष्ट प्रबन्धन

प्रकृति में फैले अपशिष्ट पदार्थ का बायोचार का उत्पादन करके उसको कृषि एवं ऊर्जा उपयोग के योग्य बनाया जा सकता है जिससे कि उस व्यर्थ पड़े पदार्थ का कृषि में उपयोग करने पर एक अच्छा फसल उत्पादन भी मिल सकता है  और साथ ही साथ उसका पुनर्चक्रण भी हो जाता है तथा बायोमास के पायरोलिसिस की क्रिया से निकलने वाले तरल पदार्थ को ऊर्जा हेतु उपयोग किया जा सकता है| इस अपशिष्ट पदार्थ के ज्यदा समय तक  पर्यवारण मे पड़े रहने से पर्यावरण दूषित होता है जिससे  कि तरह तरह की स्वास्थ समस्याओं का सामना करना पड़ता है|

यह तकनीकी अपशिष्ट पदार्थ के प्रबन्धन हेतु बहुत उपयोगी साबित हो चुकी है| यह एक सस्ती एवं टिकाऊ तकनिकी है जिसके द्वरा पर्यावरण स्वच्छता के साथ साथ आय भी उत्पन्न होती है| जैसे कि बायोचार का उपयोग कृषि उत्पादन मे किया जा सकता है और पायरोलिसिस की क्रिया द्वारा उत्पन्न द्रव का उपयोग जैविक ईधन के रूप मे विभिन्न मकसद से किया जा सकता है| इस तकनीकी से बड़ी मात्रा में फैले अपशिष्ट पदार्थ का छोटे एवं बड़े स्तर पर प्रबन्धन किया जा सकता है| वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह तकनीक बहुत उपयोगी साबित हो चुकी है|

 

मृदा सुधार मे

कृषि उत्पादन के लिए विश्व भर में बड़े पैमाने पर रासायनिक उर्वरको का प्रयोग हो रहा है जिससे कि मृदा की  उर्वरक शक्ति प्राभावित होती है तथा मृदा के भौतिक-रासायनिक एवं जैविक गुणो पर भी विपरीत असर पड़ रहा है| वह फसल की उत्पादन दर दिन प्रति दिन कम होती जा रही है एवं साथ ही साथ मृदा की जैव विभिद्ता भी कम हो रही जिसमे की कृषि उपयोगी सूक्ष्म जीवो की संख्या मे भी कमी आ रही है| इन सब का सीधा असर मृदा की उर्वरक शक्ति पर पड़ता है और यदि इसके विपरीत कृषि उत्पादन में जैविक एवं बयोचार जैसे उर्वरको का उपयोग किया जाये तो मृदा को स्वास्थ रखा जा सकता है|

बायोचार मृदा की भौतिक रासायनिक गुणो के साथ साथ यह मृदा के जैविक गुणो पर भी सकरात्मक प्रभाव डालता है| यह मृदा की नमी रोकने की क्षमता को बढाता है तथा मृदा कणों के घनत्व को कम करता है क्योंकि बायोचार का घनत्व कम होता है| बायोचार मृदा उपयोगी सूक्ष्म जीवो के लिए एक शुरक्षा कवच का काम करता है जिससे की मृदा में उपस्थित दूसरे जीव का शिकार होने से बच जाते है जैसे निमेटोड, प्रोटोजोया आदि| बायोचार में लगभग ८० प्रतिशत कार्बन तथा वाकी अन्य तत्व पाये जाते है| वह सभी मृदा मे जरुरी पौषक तत्वों का काम करते है| बायोचार उपचारित कृषि की उत्पादन क्षमता बायोचार के गुणो पर निर्भर करती है|

अर्थार्त बायोचार किस तापमान पर तैयार किया गया है यह महत्पूर्ण होता है| सामान्यत: बायोचार ५००, ६००, ७००, ८००, ९००, १००० डिग्री सेंन्टीग्रट तापमान पर तैयार किया जाता है परन्तु ५००-६०० डिग्री सेंन्टीग्रट तापमान पर तैयार किया गया बायोचार मृदा के लिए ज्यादा प्रभावशाली माना जाता है क्योकि इसके अंदर मृदा उपयोगी लगभग अधिकतर पौषक तत्व विद्धमान होते है| अगर संक्षेप मे बायोचार के महत्व की बात की जाये तो यह पर्यावरण अनुकूल पदार्थ होता है इसका कोई भी नकारात्मक प्रभाव पर्यावरण पर नहीं पड़ता है| यह बात उच्च स्तरीय वैज्ञानिक अनुशंधानो से सिद्ध भी हो चुकी है|

पर्यावरण प्रबन्धन मे बायोचार की भूमिका

                        चित्र: फसल उत्पादन में बायोचार का उपयोग ( स्रोतhttp://www.youtube.com/watch?v=f9MbLOLI600) 

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